शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

पत्रकार कमाल खान का निधन


आज की चिल्लाने,धमकाने,चीख-पुकार भरी और चाटुकारितायुक्त पत्रकारिता के दौर में शान्त, मीठे व सहज अंदाज़ में जनता से जुड़े मुद्दों को मुख्य खबर बनाकर प्रस्तुत कर वास्तविक व श्रेष्ठ पत्रकारिता करने वाले पत्रकार कमाल खान अब हमारे बीच नहीं रहे। एनडीटीवी के वरिष्ठ व लोकप्रिय पत्रकार कमाल खान का निधन हो गया है। एनडीटीवी के साथ वे लम्बे समय से जुड़े थे। ऐसा लगता है कि शनै: शनै: पत्रकारिता का स्वर्णम युग व वास्तविक पत्रकार एक-एक करके विदा होते जा रहे हैं। लोकतन्त्र के इस चौथे स्तंभ का क्या भविष्य होगा यह तो समय के गर्भ में है लेकिन मेरे देखे एक ज़माना था जब पत्रकारिता में संबंधों (रिलेशनसिप) का दौर हुआ करता था। पत्रकारों व नेताओं के बीच आत्मीय संबंध हुआ करते थे जो उनके पेशे में कभी आड़े नहीं आते थे, पत्रकार अपने चहेते नेता से भी कटु से कटु सवाल पूछने से नहीं झिझकते थे और नेता भी तमतमाते हुए जवाब देने के बाद सबकुछ हंसकर भूल जाया करते थे, फ़िर आया मीडिया मैनेजमेंट का दौर जहां ज़ाहिरात (एडवरटाइज़मेन्ट) के माध्यम से मीडिया संस्थानों का राजस्व बढ़ाकर उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रित किया जाने लगा यहां से पत्रकारिता जगत एक पायदान नीचे की ओर सरकना प्रारम्भ हुआ। वर्तमान दौर है पत्रकारिता दमन का (मीडिया डामीनेशन) का जहां येन-केन-प्रकारेण साम-दाम-दण्ड-भेद का प्रयोग करके मीडिया को चारण बनाया जा रहा है ये पत्रकारिता का सर्वाधिक बुरा और निम्न-स्तरीय दौर है। ऐसे प्रतिकूल दौर में कमाल खान जैसे पत्रकार ने धारा के विपरीत चलते हुए लोकतन्त्र के इस चौथे स्तंभ को जिस प्रकार ध्वस्त होने से बचाने का जो भगीरथी प्रयास किया वह निश्चय ही स्तुत्य और प्रशंसनीय है। अब कमाल खान हमारे बीच नहीं है लेकिन एक पत्रकार के तौर पर उनके द्वारा कायम की श्रेष्ठ पत्रकारिता की मिसाल सदैव इस जगत में अक्षुण्ण रहेगी।
अलविदा कमाल खान.....

!! ऊं शान्ति !!
-सम्पादक "सरल चेतना"

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

कब करें हवन...?

 


हमारे सनातन धर्म में हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू परम्परा में कोई भी मांगलिक कार्य हवन किए बिना सम्पूर्ण नहीं माना जाता चाहे वह विवाह हो, देव प्रतिष्ठा हो, गृहप्रवेश हो, व्रतोद्यापन, ग्रहशान्ति अनुष्ठान आदि सभी कार्यों की पूर्णता हवन से ही होती है। शास्त्रानुसार विप्रों को तो नित्य अग्निहोत्र करना चाहिए किन्तु जब कभी किसी विशेष कार्य हेतु हवन करना हो तो उसमें अग्निवास का पृथ्वी पर होना अनिवार्य माना गया है। हवन की अग्नि को देवताओं का मुख माना गया है इसलिए हवन वाले दिन अग्नि का वास पृथ्वी पर होना आवश्यक होता है। वहीं अग्नि की साक्षी भी मांगलिक कार्यों में महत्त्वपूर्ण मानी गयी है। अत: अग्निवास के पृथ्वी पर होने से हवन के शुभफलों में वृद्धि होकर कार्य सिद्धि में कोई भी संशय नहीं रहता है। आज हम अपने पाठकों के लिए यह महत्त्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं कि पक्षानुसार किन तिथियों व दिनों में अग्नि का वास पृथ्वी पर होता है। आईए जानते हैं-

-नीचे दिए गए विवरण में जब अमुक तिथि; अमुक वार को होगी तभी अग्निवास पृथ्वी पर होगा जैसे कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन यदि सोमवार और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को रविवार होगा तो अग्निवास पृथ्वी पर होगा अत: इस दिन हवन करना अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक उत्तम व श्रेयस्कर रहेगा।

 

कृष्ण पक्ष  -    वार  -                   तिथि

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01-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - प्रतिपदा

02-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - द्वितीया

03-         रविवार,बुधवार,गुरूवार                  - तृतीया

04-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - चतुर्थी

05-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - पंचमी

06-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - षष्ठी

07-         रविवार,बुधवार,गुरूवार                  - सप्तमी

08-         मंगलवार-बुधवार,शनिवार                - अष्टमी

09-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - नवमी

10-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - दशमी

11-         रविवार,बुधवार,गुरूवार                  - एकादशी

12-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - द्वादशी

13-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - त्रयोदशी

14-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - चतुर्दशी

15-         रविवार,मंगलवार,बुधवार                 - अमावस

 

 

 

शुक्ल पक्ष  -    वार                      -तिथि

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01-         रविवार, सोमवार, गुरूवार,शुक्रवार         - प्रतिपदा

02-         रविवार,बुधवार,,गुरूवार                  - द्वितीया

03-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - तृतीया

04-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - चतुर्थी

05-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - पंचमी

06-         रविवार,बुधवार,गुरूवार                  - षष्ठी

07-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - सप्तमी

08-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - अष्टमी

09-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - नवमी

10-         रविवार,बुधवार,गुरूवार                  - दशमी

11-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - एकादशी

12-         सोमवार,मंगलवार,शुक्रवार,शनिवार         - द्वादशी

13-         रविवार,सोमवार,गुरूवार,शुक्रवार           - त्रयोदशी

14-         रविवार,मंगलवार,बुधवार                 - चतुर्दशी

15-         मंगलवार,बुधवार,शनिवार                - पूर्णिमा

 

 

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

 

 

 



गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

जन्मपत्रिका में ज्योतिषी बनने योग-

  
आज जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति के सोपान चढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे ज्योतिष व विज्ञान का फ़ासला कम होता जा रहा है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले कुछ दशकों में ज्योतिष विज्ञान के रूप में प्रसिद्धि पा लेगा लेकिन यह तभी सम्भव है जब श्रेष्ठ व विद्वान ज्योतिषीगण ज्योतिष कार्य को रूढ़िगत सिद्धान्तों एवं व्यावसायिक मापदण्डों से ऊपर उठकर अनुसंधनात्मक एवं शोधपरक रूप में करें। क्या यह योग्यता हर ज्योतिषी को अनिवार्यरूपेण प्राप्त हो सकती है? इस प्रश्न का उत्तर भी हमें ज्योतिशास्त्र में ही मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में एक श्रेष्ठ ज्योतिषी या भविष्यवक्ता बनने के कुछ विशेष योगों व ग्रहस्थितियों का उल्लेख हमें प्राप्त होता है। यह विशेष ग्रहस्थितियां व योग यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में हों तो वह एक श्रेष्ठ व अनुसंधानात्मक ज्योतिष कार्य करने वाला ज्योतिषी होता है। किसी भी ज्योतिषी की पत्रिका का विश्लेषण कर यह पता लगाया जा सकता है कि उसमें भविष्यकथन करने की योग्यता है भी या नहीं। एक आध्यात्मिक व श्रेष्ठ ज्योतिषी की पहचान उसकी जन्मपत्रिका में स्थित ग्रहों की विशेष स्थिति से सरलता से की जा सकती है। आईए जानते हैं कि वे कौन से ग्रह, योग व ग्रहस्थितियां होती हैं जिनके फलस्वरूप जातक एक श्रेष्ठ भविष्यवक्ता बन सकता है।
गुरू की शुभ स्थिति-
श्रीमद्भगवदगीता में कहा गया है "गहना कर्मणो गति:" अर्थात् कर्म की गति गहन है। मनुष्य के संचित कर्मों से ही "प्रारब्ध" का निर्माण होता है। जातक को जन्मपत्रिका में जो भी शुभाशुभ योग व ग्रहस्थितियां प्राप्त होती हैं वे सभी पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम होती हैं। कर्म के सिद्धान्त को समझ पाना एक दुष्कर कार्य है जो बिना विवेक के असम्भव है। ज्योतिष शास्त्र में गुरू को बुद्धि, विवेक व अध्यात्म का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। अत: एक श्रेष्ठ ज्योतिषी की जन्मपत्रिका में गुरू की शुभ स्थिति होना अनिवार्य है। एक विद्वान ज्योतिषी की जन्मपत्रिका में गुरू का केन्द्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ, स्वग्रही, उच्चग्रही, उच्चाभिलाषी ग्रह होना आवश्यक है। गुरू की शुभ स्थिति के बिना कोई भी जातक अच्छा ज्योतिषी नहीं बन सकता। 

बुध की शुभ स्थिति-

ज्योतिष शास्त्र में बुध को वाणी का नैसर्गिक कारक माना गया है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी के लिए वाक् सिद्धि होना आवश्यक है। बिना वाणी को सिद्ध किए कोई भी जातक एक सफल भविष्यकवक्ता नहीं बन सकता। वाक् सिद्धि के लिए बुध का शुभ स्थिति में होना अनिवार्य है। बुध की शुभ स्थिति के लिए बुध का जन्मपत्रिका में केन्द्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ व उच्चराशिस्थ या उच्चाभिलाषी होना आवश्यक है।

सूर्य की शुभ स्थिति-

ज्योतिष शासत्रानुसार सूर्य आत्मा का कारक है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी तब तक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध नहीं होगा जब तक की उसकी जन्मपत्रिका में सूर्य की शुभ स्थिति नहीं होगी। आध्यात्मिक ज्योतिषी के लिए सूर्य का केन्द्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ व उच्चराशिस्थ या उच्चाभिलाषी होना आवश्यक है।

बुध-गुरू का सम्बन्ध-

ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार बुध एवं गुरू के परस्पर प्रबल सम्बन्ध के बिना कोई जातक श्रेष्ठ भविष्यवक्ता नहीं बन सकता। विद्वान भविष्यवक्ता की जन्मपत्रिका में बुध व गुरू का पारस्परिक सम्बन्ध होना अनिवार्य है। ये सम्बन्ध चार प्रकार से क्रमश: प्रबलता प्राप्त करता है-

1. बुध-गुरू की युति

2. बुध-गुरू का दृष्टि सम्बन्ध 

3. बुध-गुरू अधिष्ठित राशिस्वामी का दृष्टि सम्बन्ध

4. बुध-गुरू का परस्पर राशि परिवर्तन सम्बन्ध

पंचम् भाव एवं पंचमेश- 

जन्मपत्रिका के पंचम् भाव को उच्चशिक्षा एवं विवेक का प्रतिनिधि भाव माना जाता है। पंचम् भाव का अधिपति विवेक व बुद्धि का तात्कालिक कारक होता है। एक अच्छे ज्योतिषी की जन्मपत्रिका में पंचमेश का शुभ भावों में स्थित होना आवश्यक है एवं पंचम् भाव पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव भी नहीं होना चाहिए। 

अष्टम् भाव व केतु की भूमिका भी महत्तवपूर्ण-

ज्योतिष शास्त्रानुसार केतु को मोक्ष का कारक माना गया है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी तभी सटीक भविष्यवाणी कर सकता है जब उसे पराविज्ञान का लाभ मिले। जन्मपत्रिका का अष्टम् भाव आयु के साथ-साथ पराविद्याओं का भी होता है यदि अष्टम् भाव का सम्बन्ध किसी प्रकार से भी केतु से हो तो ऐसे जातक को पराविद्या का लाभ किसी वरदान की तरह प्राप्त होता है। इस योग के फलस्वरूप वह जातक सटीक भविष्यसंकेत करने में सक्षम होता है।

उपर्युक्त ज्योतिषीय विवेचन के आधार पाठकगण यह भलीभांति समझ चुके होंगे कि ऊपर वर्णित ग्रहस्थिति के बिना कोई भी जातक श्रेष्ठ व प्रामाणिक ज्योतिषी नहीं बन सकता है। यहां पाठकों को यह बताना लाभदायक होगा कि हमारी जन्मपत्रिका में ऊपर वर्णित ग्रहस्थितियों में से अधिकांश ग्रहस्थितियां (प्रत्येक सिद्धान्त में से एक अवश्य उपस्थित) निर्मित हुई हैं। मुझे विश्वास है कि अब ज्योतिष-शास्त्र की प्रामाणिकता का निर्णय आप सभी सुधि पाठकगण भलीभांति कर सकेंगे।

 

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com 

शनिवार, 21 नवंबर 2020

क्या करें जब मिले ना शुभ मुहूर्त्त!

 

हमारे सनातन धर्म में किसी भी कार्य के लिए शुभ व शुद्ध मुहूर्त्त की अनिवार्य आवश्यकता बताई गई है; विशेषकर विवाह,गृहप्रवेश,गृहारम्भ, मुण्डन, द्विरागमन आदि में, किन्तु कई बार ऐसी ग्रहस्थितियों का निर्माण हो जाता है कि अपेक्षानुसार हमें शुभ व शुद्ध मुहूर्त्त नहीं मिल पाता है। ऐसी परिस्थिति में मन दुविधाग्रस्त हो किंतर्व्यविमूढ़ हो जाता है। इस संशयग्रस्त स्थिति से निपटने के लिए हमारे शास्त्रों में कुछ विशेष मुहूर्त्त का उल्लेख है जिनमें विशेष दिन के अनुसार बनते है एवं इन मुहूर्त्तों में अन्य किसी ग्रहस्थिति का परीक्षण करने की आवश्यकता ही नहीं होती केवल इन दिनों का होना ही पर्याप्त होता है। ऐसे विशेष मुहूर्त्तों को हमारे मुहूर्त्त-शास्त्र में "साढ़े तीन मुहूर्त्त", "स्वयंसिद्ध मुहूर्त्त" या "अबूझ मुहूर्त्त" के नाम से जाना जाता है। आज हम पाठकों को इन "अबूझ" मुहूर्त्तों के विषय में जानकारी देंगे। इन मुहूर्त्तों की संख्या प्रतिवर्ष "साढ़ेतीन" की होती है इसलिए इन्हें लोकाचार की भाषा में "साढ़ेतीन" मुहूर्त्त भी कहा जाता है। कुछ विद्वान "रविपुष्य" व "गुरूपुष्य" को भी इस श्रेणी में मान्य करते हैं किन्तु हम यहां स्पष्ट कर दें कि शास्त्रानुसार "रविपुष्य" एवं "गुरूपुष्य़" अबूझ मुहूर्त्त की श्रेणी में नहीं आते हैं।

आईए जानते हैं कि ये "साढ़े तीन" या "अबूझ" मुहूर्त्त कौन से होते हैं-

"स्वयंसिद्ध मुहूर्त्त" या "अबूझ मुहूर्त्त"

1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा/चैत्र नवरात्रि घट स्थापना/हिन्दू वर्षारम्भ)

2. वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया/अखातीज)

3. आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/दशहरा)

4. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का अर्द्धभाग

उपर्युक्त मुहूर्त्तों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वैशाख शुक्ल तृतीया, आश्विन शुक्ल दशमी पूर्ण दिवस एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का अर्द्धभाग शुभ होने से इन्हें "साढ़े तीन" मुहूर्त्त भी कहा जाता है।

विवाह मुहूर्त्त में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष नियम-

शास्त्रानुसार "स्वयंसिद्ध" या "अबूझ" मुहूर्त्त के अतिरिक्त विवाह में कार्तिक पूर्णिमा को विशेष मुहूर्त्त के तौर पर मान्य किया जाता है। जब विवाह का शुद्ध मुहूर्त्त ना बन पा रहा तो कार्तिक पूर्णिमा के पूर्व व पश्चात् के पांच दिन विवाह के लिए उपयुक्त माने गए हैं। यहां तक कि कुछ विद्वानों ने तो इन मुहूर्त्तों में त्रिबल शुद्धि व गुरू-शुक्रास्त को भी विचारणीय नहीं माना है लेकिन यह मुहूर्त्त केवल "आपातकाले मर्यादा नास्ति..." के सिद्धान्त अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में ही ग्राह्य होते हैं।

"गोधूलि लग्न" की ग्राह्यता-

मुहूर्त्त शास्त्र में "गोधूलि" लग्न को "स्वयंसिद्ध" मुहूर्त्त के तौर पर मान्यता प्रदान की गई है। जब विवाह का दिन सुनिश्चित हो जाए और पाणिग्रहण हेतु शुद्ध लग्न की प्राप्ति ना हो तो "गोधूलि" लग्न की ग्राह्यता शास्त्रानुसार बताई गई है। "गोधूलि लग्न" सूर्यास्त से 12 मिनिट पूर्व एवं पश्चात् कुल 24 मिनिट अर्थात् 1 घड़ी की होती है, मतान्तर से कुछ विद्वान से इसे सूर्यास्त से 24 मिनिट पूर्व व पश्चात् कुल 48 मिनिट का मानते हैं लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि "गोधूलि लग्न" की ग्राह्यता केवल आपात परिस्थिति में ही होती है जहां तक सम्भव हो शुद्ध लग्न को ही प्राथमिकता देना चाहिए।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

 

 

 

शुक्रवार, 1 मई 2020

विवाह में शुद्ध लग्न का चयन कैसे करें?


 विवाह हमारे षोडश संस्कारों में एक महत्त्वपूर्ण संस्कार माना गया है। जीवनसाथी के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा माना जाता है। विवाह योग्य आयु होने एवं उपयुक्त जीवनसाथी के चुनाव के पश्चात अक्सर माता-पिता को अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह के मुहूर्त्त को लेकर बड़ी चिन्ता रहती है। सभी माता-पिता अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह श्रेष्ठ मुहूर्त्त में सम्पन्न करना चाहते हैं। विप्र एवं दैवज्ञ के लिए भी विवाह मुहूर्त्त का निर्धारण करना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। विवाह मुहूर्त्त के निर्धारण में कई बातों का विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक होता है। शास्त्रानुसार श्रेष्ठ मुहूर्त्त कई प्रकार के दोषों को शमन करने में समर्थ होता है। अत: विवाह के समय पाणिग्रहणसंस्कार की लग्न का निर्धारण बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। विवाह लग्न का निर्धारण करते कुछ बातों एवं ग्रहस्थितियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आज हम पाठकों को विवाह लग्न के निर्धारण से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी देंगे।

पाणिग्रहण संस्कार की लग्न शुद्धि हेतु निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

1. विवाह लग्न का चुनाव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि विवाह लग्न वर अथवा कन्या के जन्म लग्न व जन्मराशि से अष्टम राशि का ना हो।

2. विवाह लग्न के निर्धारण में यदि लग्न में जन्मलग्न के अष्टमेश की उपस्थिति हो तो उस लग्न को त्याग दें। विवाह लग्न में जन्मलग्न के अष्टमेश का होना अति-अशुभ होता है।

3. विवाह लग्न में "लग्न भंग" योग नहीं होना चाहिए। विवाह लग्न से द्वादश भाव में शनि, दशम भाव में मंगल, तीसरे भाव में शुक्र, लग्न में पापग्रह या क्षीण चन्द्रमा स्थित नहीं होना चाहिए।

4. विवाह लग्नेश, चन्द्र व शुक्र अशुभ अर्थात 6, 8, 12 भाव में नहीं होने चाहिए।

5. विवाह लग्न में सप्तम व अष्टम भाव ग्रहरहित होने चाहिए।

6. विवाह लग्न कर्त्तरी योग से ग्रसित नहीं होना चाहिए।

7. विवाह लग्न अन्ध, बधिर या पंगु नहीं होना चाहिए। मेष, वृषभ, सिंह, दिन में अन्ध, मिथुन,कर्क,कन्या रात्रि में अन्ध, तुला, वृश्चिक दिन में बधिर, धनु,मकर रात्रि में बधिर, कुम्भ दिन में पंगु, मीन रात्रि में पंगु लग्न होती हैं किन्तु ये लग्न अपने स्वामियों या गुरू से दृष्ट हों तो ग्राह्य हो जाती हैं।

गोधूलि-लग्न की ग्राह्यता-

जब विवाह में पाणिग्रहण हेतु शुद्ध लग्न की प्राप्ति ना हो तो "गोधूलि" लग्न की ग्राह्यता शास्त्रानुसार बताई गई है। "गोधूलि लग्न" सूर्यास्त से 12 मिनिट पूर्व एवं पश्चात् कुल 24 मिनिट अर्थात् 1 घड़ी की होती है, मतान्तर से कुछ विद्वान से इसे सूर्यास्त से 24 मिनिट पूर्व व पश्चात् कुल 48 मिनिट का मानते हैं लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि "गोधूलि लग्न" की ग्राह्यता केवल आपात परिस्थिति में ही होती है जहां तक सम्भव हो शुद्ध लग्न को ही प्राथमिकता देना चाहिए।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com