मंगलवार, 24 मार्च 2015

खग्रास-चन्द्रग्रहण


27 जुलाई 2018 को है "खग्रास-चन्द्रग्रहण"

 









रत्न धारण में सावधानी रखें

कई लोगों को रत्न धारण करने शौक होता है। कुछ अल्प ज्ञानी ज्योतिषी भी इस शौक के लिए जिम्मेवार होते हैं जिनका अक्सर रत्न बेचने वालों से बड़ा गहरा संबंध होता है इसलिए जब भी मैं किसी मित्र को रत्न ना धारण करने सलाह देता हूं तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। कुछ मित्र मायूस भी हो जाते हैं। सामान्यतः ज्योतिष के क्षेत्र में राशि रत्न, लग्नेश का रत्न, विवाह के गुरू का रत्न, तो आजकल एक नया फ़ैशन लाकेट का चल निकला है जिसमें ज्योतिषीगण लग्नेश,पंचमेश व नवमेश के रत्नों का लाकेट बनवाकर पहनने का परामर्श देते हैं। मेरे देखे ऐसा करना अनुचित है। रत्नों के धारण करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। रत्नों को धारण करने से पहले उन ग्रहों की जन्मपत्रिका में स्थिति व अन्य ग्रहों से संबंध का ज्ञान होना अतिआवश्यक है, चाहे वे रत्न लग्नेश अथवा राशीश के ही क्यों ना हों। यह भी देखना आवश्यक है कि जिस ग्रहा रत्न धारण कर रहे हैं वह किस ग्रह से क्या संबंध बना रहा है अथवा किस ग्रह से अधिष्ठित राशि का स्वामी है। यदि एकाधिक रत्न धारण की स्थिति बन रही हो तो वर्जित रत्नों का ध्यान भी रखा जाना आवश्यक है। पंचधा मैत्री में ग्रहों के आपसी संबंध की भी रत्न धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
एक सर्वथा गलत धारणा यह है कि रत्न हमेशा ग्रह शांति के लिए पहना जाता है जबकि वास्तविकता इसे ठीक विपरीत है, रत्न हमेशा ग्रह के बल में वृद्धि करने के लिए धारण किया जाता है। कुछ रत्न ग्रहशांति के उपरान्त अल्प समयावधि के लिए ही धारण किए जाते हैं। अतः रत्न धारण करने से पूर्व अत्यंत सावधानी रखते हुए रत्न धारण करने से पूर्व किसी श्रेष्ठ ज्योतिषी से भलीभांति परामर्श के बाद ही रत्न धारण करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।
-ज्योतिर्विद हेमन्त रिछारिया

ज्योतिष को “विंडो शापिंग” ना समझें

यात्रा के दौरान या किसी समारोह में जब मैं अपना परिचय एक ज्योतिषी के रूप में देता हूं तब बड़ी रोचक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। कुछ लोग इसे अंधविश्वास को बढ़ाने वाली ठग विद्या सिद्ध करने के लिए कुतर्क करने लगते हैं, कुछ परीक्षक की भांति मेरे ज्ञान का परीक्षण करने लगते हैं तो कुछ झट अपनी कुण्डली निकालकर या पास ही पड़े किसी कागज़ पर कुण्डली उकेरकर फ़लित पूछने लगते हैं। मेरा इस प्रकार का व्यवहार करने वाले तमाम महानुभावों से यही निवेदन है कि ज्योतिष कोई “विंडो शापिंग” नहीं है कि आप यूं ही तफ़री के लिए बाज़ार गए वहां निरूद्देश्य दुकानों पर ताक-झांक करते हुए कोई वस्तु पसन्द आ गई और दुकानदार से मोल-भाव जम गया तो खरीद ली अन्यथा आगे बढ़ गए। यहां मुझे रामायण का रावण -वध प्रसंग स्मरण आ रहा है। जब प्रभु श्रीराम ने भूमि पर गिरे अंतिम सांसे गिनते रावण की ओर इशारा कर लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि जाओ इस महापंडित से उपदेश ग्रहण करो तब लक्ष्मण जी रावण के सिर की ओर जाकर खड़े हो गए तब रावण ने यह कहते हुए अपना मुंह फ़ेर लिया कि लक्ष्मण जब हम किसी से कुछ ग्रहण करने जाते हैं तो याचक की भांति जाना चाहिए तब लक्ष्मण जी रावण के पैर की तरफ़ जाकर बैठे किंतु पुनः रावण ने यह कहते हुए मुंह फ़ेर लिया किया जब भी किसी विद्वान से भेंट करने जाओ
तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए तब कहते हैं लक्ष्मण जी वहीं भूमि से एक तिनका उठाकर महापंडित रावण को भेंट किया तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया। कहने का तात्पर्य यह है कि हर कार्य की एक मर्यादा होती है; एक उचित तरीका होता है, उस मर्यादा से परे जाकर उस कार्य को करना मेरे देखे पाप करने जैसा है। विद्वानों को चाहिए कि महत्वपूर्ण कार्यों की मर्यादा एवं उचित मार्ग के संबंध में जनमानस को मार्गदर्शित करें।

-ज्योतिर्विद हेमन्त रिछारिया