बुधवार, 24 अप्रैल 2019

गोधूलि लग्न में कब करें विवाह...!



विवाह का दिन एवं विवाह लग्न निश्चित करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण व श्रमसाध्य कार्य है जिसे किसी विद्वान दैव से ही करवाना चाहिए।  अक्सर लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ती के चलते विवाह का दिन व लग्न सुनिश्चित करने में गंभीर लापरवाही एवं शुभ-मुहूर्त्त की उपेक्षा करते हैं। जिसका दुष्परिणाम यदा-कदा दम्पत्ति को अपने वैवाहिक जीवन में भोगना पड़ता है। शास्त्रानुसार विवाह लग्न की शुद्धि "मेलापक" (कुण्डली मिलान) के कई दोषों को समाप्त करने का सामर्थ्य रखती है। अत: विवाह का दिन एवं विवाह लग्न का चयन बड़ी ही सावधानी से किया जाना चाहिए।

क्या है "गोधूलि लग्न" ?

जब भी विवाह-लग्न चयन की बात होती है तो "गोधूलि लग्न" की भी चर्चा होती है। गोधूलि बेला के सही समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान गोधूलि बेला को सूर्यास्त से 12 मिनिट पूर्व एवं सूर्यास्त से 12 मिनिट पश्चात कुल एक घड़ी का मानते हैं वहीं कुछ विद्वानों के मतानुसार गोधूलि बेला सूर्यास्त से 24 मिनिट पूर्व व सूर्यास्त से 24 मिनिट पश्चात कुल 2 घड़ी का माना जाता है। बहरहाल, आज हमारा विषय गोधूलि बेला के समय के स्थान पर गोधूलि लग्न की ग्राह्यता पर आधारित है।

विवाह में "गोधूलि लग्न" का चयन कब करें?

आज हम "वेबदुनिया" के पाठकों को इस विशेष जानकारी से अवगत करा रहे हैं कि विवाह गोधूलि-लग्न केवल तभी ग्रहण की जाती है जब विवाह हेतु शुद्ध दिवस का चयन होने के उपरान्त भी शुद्ध विवाह-लग्न उपस्थित ना हो। यदि विवाह वाले दिन शुद्ध लग्न उपस्थित है तो मात्र अपनी सुविधा के लिए "गोधूलि-लग्न" का चयन किया जाना शास्त्रसम्मत नहीं है। शास्त्र में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जहां तक सम्भव हो विवाह वाले दिन शुद्ध लग्न के चयन को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। शुद्ध विवाह लग्न की अनुपस्थिति में ही केवल "गोधूलि-लग्न" का चयन किया जाना चाहिए अन्यत्र नहीं।

विवाह लग्न के चयन में इन बातों का रखें ध्यान-
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विवाह लग्न का चयन करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक है-
1. वर एवं वधू के जन्मलग्न व जन्म राशि की अष्टम राशि विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
2. वर एवं वधू के जन्मलग्न से अष्टमेश विवाह लग्न में उपस्थित नहीं होना चाहिए।
3. वर एवं वधू का जन्मलग्न विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
4. विवाह लग्न में "लग्न-भंग" योग नहीं होना चाहिए।
5. विवाह लग्न में "कर्तरी-दोष" से पीड़ित नहीं होना चाहिए।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

ग्रहशान्ति हेतु करें "औषधि स्नान"



अरिष्ट ग्रहों की शान्ति विषयक चर्चा में हम अपने पूर्ववर्ती दो आलेखों में मंत्रात्मक जप-अनुष्ठान एवं दान के बारे बता चुके हैं। आज ग्रहशान्ति से सम्बन्धित अन्तिम चरण में हम अपने पाठकों को अरिष्ट ग्रहों की शान्ति हेतु "औषधि स्नान" के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे।

क्या है "औषधि स्नान"

जन्मपत्रिका के अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए जैसे मंत्रात्मक अनुष्ठान, दान एवं रत्न धारण करने का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है वैसे ही अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों के निवारण के लिए उन ग्रहों से सम्बन्धित जड़ी-बूटी व कुछ विशेष सामग्री मिश्रित जल से स्नान करने का भी वर्णन मिलता है। ग्रहों से सम्बन्धित जड़ी-बूटी मिश्रित जल से स्नान करने को ही "औषधि स्नान" कहा जाता है। नित्य "औषधि स्नान" करने से अशुभ व क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभावों में कमी आती है।

आईए जानते हैं सम्पूर्ण नवग्रहों के "औषधि स्नान" के बारे में-
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1. सूर्य- इलायची, केसर, रक्त चन्दन, मुलेठी, लाल पुष्प मिश्रित जल से स्नान।
2. चन्द्र- पंचगव्य, खिरनी की जड़, श्वेत चन्दन, श्वेत पुष्प मिश्रित जल से स्नान।
3. मंगल- रक्त (लाल) चन्दन, जटामांसी, हींग, लाल पुष्प मिश्रित जल से स्नान।
4. बुध- अक्षत, गोरोचन, विधारा की जड़, शहद, जायफल मिश्रित जल से स्नान।
5. गुरू- हल्दी, शहद, गिलोय, मुलेठी, चमेली के पुष्प मिश्रित जल से स्नान।
6. शुक्र- जायफल, केसर, इलायची, चमेली या सफ़ेद पुष्प मिश्रित जल से स्नान।
7. शनि- सौंफ़, खस, सुरमा, काले तिल मिश्रित जल से स्नान।
8. राहु- कस्तूरी व लोबान मिश्रित जल से स्नान।
9. केतु- रक्त चन्द व कुशा मिश्रित जल से स्नान।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

नवग्रहों के दान एवं हवन समिधा-


अरिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों को कम करने हेतु ग्रहशान्ति की शास्त्रोक्त प्रक्रियाओं के बारे में पाठकगण हमारे पूर्ववर्ती आलेख में जानकारी प्राप्त कर चुके हैं जिसमें सभी नौ ग्रहों के मन्त्रों एवं उनकी उचित जाप संख्या के बारे में बताया गया था। अरिष्ट ग्रहों की शान्ति के अगले चरण आज हम अपने पाठकों को समस्त नौ ग्रहों की दान सामग्री, दान का समय एवं पूर्णाहुति हवन हेतु उचित समिधा की जानकारी देंगे।
आईए जानते हैं कि नवग्रहों की दान सामग्री, दान का समय एवं हवन समिधा कौन सी है-
1. सू्र्य : दान सामग्री-लाल वस्त्र-लाल वस्त्र, गुड़, माणिक्य, गेहूं, मसूर की दाल, लाल पुष्प, केसर, तांबा, स्वर्ण, लाल गाय आदि।
दान का समय-सूर्योदय
हवन समिधा-आक (अकाव)
2. चन्द्र: दान सामग्री-श्वेत वस्त्र, लाल वस्त्र, चावल, शक्कर, सफ़ेद पुष्प, कर्पूर, दूध, दही, चांदी, मोती, शंख, घी, स्फ़टिक आदि।
दान का समय-संध्या
हवन समिधा-पलाश
3. मंगल : दान सामग्री-लाल वस्त्र-लाल वस्त्र, गुड़, मूंगा, लाल पुष्प, केसर, तांबा, रक्त चन्दन, मसूर की दाल आदि।
दान का समय-सूर्योदय से 5 घड़ी के बाद पूरा दिन
हवन समिधा-खैर
4. बुध: दान सामग्री- हरा वस्त्र, साबुत मूंग, हरे फल, पन्ना, कांस्य, किताबें।
दान का समय- सूर्योदय से 5 घड़ी के बाद पूरा दिन
हवन समिधा-अपामार्ग
5. गुरू: दान सामग्री- पीला वस्त्र, स्वर्ण, पुखराज, साबुत हल्दी, गाय का घी, चने की दाल, पीले पुष्प, पीले फल आदि।
दान का समय-संध्या
हवन समिधा-पीपल
6. शुक्र: दान सामग्री- श्वेत वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएं, हीरा, स्फ़टिक, चांदी, चावल, शक्कर, इत्र, श्वेत चन्दन, श्वेत पुष्प, दूध, दही आदि।
दान का समय- सूर्योदय
हवन समिधा-गूलर
7. शनि: दान सामग्री-काला वस्त्र, उड़द दाल, काले तिल, तिल का तेल, चमेली का तेल, सरसों का तेल, लोहा, छाता, चमड़े, नीलम, कम्बल आदि।
दान का समय- मध्यान्ह काल
हवन समिधा-शमी
8. राहु: दान सामग्री-काला या नीला वस्त्र, उड़द दाल, तेल से भरा ताम्रपात्र, सूपड़ा, कम्बल, सप्तधान्य, गोमेद, खड़्ग आदि।
दान का समय-रात्रि
हवन समिधा-दूर्वा
9. केतु: दान सामग्री-काला वस्त्र, काले तिल, चमेली का तेल, लहसुनिया, चितकबरा कम्बल, साबुत उड़द, काली मिर्च आदि।
दान का समय- रात्रि
हवन की समिधा- कुशा

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com