शनिवार, 5 जनवरी 2019

"बटुक भैरव" अनुष्ठान



कठिन मनोरथों की पूर्ती करता है "बटुक भैरव" अनुष्ठान-

हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों का उल्लेख मिलता है जिन्हें उचित विधि व निर्धारित मुहूर्त्त में सम्पन्न करने से साधक की कठिन व दुष्कर मनोकामनाओं की पूर्ती होती है। ऐसा ही एक सिद्ध अनुष्ठान है "बटुक भैरव" अनुष्ठान, इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से साधक अपनी मनोवांछित अभिलाषाएं पूर्ण कर सकता है। यह अनुष्ठान रवि-पुष्य नक्षत्र, होली की पूर्णिमा, ग्रहणकाल, दुर्गाष्टमी को ही सम्पन्न किया जाना आवश्यक है। आवश्यकतानुसार इसे गुरू-पुष्य व सर्वार्थ सिद्धि योग में भी सम्पन्न किया जा सकता है। इस अनुष्ठान को रात्रि के समय सम्पन्न किया जाना श्रेयस्कर रहता है।

कैसे करें "बटुक-भैरव" अनुष्ठान-

इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिए मन्दिर या अपने घर का कोई साफ़-स्वच्छ व एकान्त कक्ष उचित रहता है। श्रेष्ठ व निर्धारित मुहूर्त्त वाले दिन सर्वप्रथम हल्दी से भोजपत्र पर "बटुक-भैरव" यन्त्र का निर्माण करें। यन्त्र के मध्य में घी का दीपक रखें। यन्त्र के सम्मुख भैरव जी का चित्र स्थापित करें। संकल्प, आवाहन, स्थापन एवं यन्त्र प्रतिष्ठा करने के उपरान्त भैरव जी का षोडशोपचार पूजन कर उन्हें दही बड़े व मदिरा का भोग अर्पित करें। तदुपरान्त निम्न मन्त्र से घी व शहद मिश्रित जौ-तिल से हवन करें। हवन के उपरान्त यन्त्र को अपने पूजाघर में स्थापित कर मनोवांछित कार्यसिद्ध होने तक नित्य पूजा-अर्चना करते रहें। कार्यसिद्ध होने के उपरान्त यन्त्र को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें। इस अनुष्ठान को आवश्यकतानुसार एक, तीन या पांच बार सम्पन्न करने से कठिन से कठिन मनोरथों की पूर्ती होती है।
मन्त्र-
"ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं स्वाहा"

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com




शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

"प्रवज्या योग"

हमारी सनातन आश्रम व्यवस्था में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक खुशहाल घर-सँसार अधिकाँश व्यक्तियों का सपना होता है। लेकिन जन्मपत्रिका में कभी-कभी ऐसी ग्रहस्थितियों का निर्माण हो जाता है जिनसे मनुष्य अपने गृहस्थ जीवन से विरक्त व विमुख होकर अध्यात्म के पथ पर अग्रसर हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को हमारे समाज में साधु-संन्यासीकहा जाता है। आईए जानते हैं वे कौन सी ग्रहस्थितियाँ होती हैं जिनके प्रभाव से मनुष्य संन्यासी-जीवन व्यतीत करता है। गृहस्थ जीवन के लिए जो ग्रह प्रमुख रूप से उत्तरदायी होते हैं वे हैं- द्वितीयेश, चतुर्थेश, द्वादशेश, शुक्र व चन्द्र। जन्मपत्रिका में दूसरा भाव कुटुम्ब व परिवार का होता है, चतुर्थ भाव घर-गृहस्थी का एवं द्वादश भाव शैय्या सुख व भोगविलास का। वहीं शुक्र भोगविलास का नैसर्गिक कारक होता है एवं चन्द्र मन का कारक होता है। यदि इनमें से चार या अधिक ग्रह षष्ठ, अष्टम या द्वादश जैसे अशुभ भावों में स्थित हों एवं इनमें अधिकांश ग्रहों पर शनि-राहु जैसे पृथकतावादी ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का मन घर-परिवार से विमुख होता है। यदि इन ग्रहों से जन्मपत्रिका में चतुर्ग्रही योग का निर्माण हो व इस युति पर केतु का प्रभाव हो तो मनुष्य उच्चकोटि का संन्यासी व मठाधीश होता है।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

कब मिलेगी खोई वस्तु-

जीवन में कभी-कभी हमारा कोई कीमती सामान या दैनिक उपयोग की वस्तु अचानक खो जाती है। अपनी प्रिय वस्तु के अचानक खो जाने के कारण जहाँ आर्थिक नुकसान तो होता ही है वहीं व्यक्ति को मानसिक अवसाद भी घेर लेता है। उस समय जातक के मन में यह प्रश्न सहज ही उठने लगता है कि उसकी खोई वस्तु मिलेगी या नहीं। ज्योतिष-शास्त्र इस प्रश्न का समाधान प्रस्तुत करता है। ज्योतिष-शास्त्र में नक्षत्रों के वर्गीकरण के आधार पर गुम हुई वस्तु के पुन: मिलने की सँभावनाओं का पता लगाया जा सकता है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार नक्षत्रों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये चार श्रेणियाँ हैं-
1. अन्ध नक्षत्र 2. मन्दलोचन नक्षत्र 3. मध्यलोचन नक्षत्र 4. सुलोचन नक्षत्र
ज्योतिष शास्त्रानुसार अन्ध नक्षत्र में खोई हुई वस्तु शीघ्र मिल जाती है। अन्ध नक्षत्र में गुम वस्तु के पूर्व दिशा में प्राप्त होने की सँभावना होती है। मन्दलोचन नक्षत्र में गुम वस्तु बहुत प्रयास करने पर कठिनता से प्राप्त होती है। मन्दलोचन नक्षत्र में खोई वस्तु के उत्तर या दक्षिण दिशा में मिलने की सँभावना होती है। मध्यलोचन नक्षत्र में खोई हुई वस्तु अत्यन्त विलम्ब से प्राप्त होती है। सुलोचन नक्षत्र में खोई हुई वस्तु के प्राप्त होने की कोई सँभावना नहीं होती है। वस्तु के गुम होने वाले समय जो नक्षत्र चल रहा होता है उसी के अनुसार उपर्युक्त आधार पर खोई हुई वस्तु की प्राप्ति की सँभावनाओं के बारे में पता लगाया जा सकता है।
हम "वेबदुनिया" के पाठकों के लिए उपर्युक्त चारों श्रेणियों में आने वाले नक्षत्रों की जानकारी यहाँ प्रदान कर रहे हैं-
1. अन्ध नक्षत्र- पुष्य,उत्तराफ़ाल्गुनी,विशाखा,पूर्वाषाढ़ा,धनिष्ठा,रेवती व रोहिणी।
2. मन्दलोचन नक्षत्र- आश्लेषा,हस्त,अनुराधा,उत्तराषाढ़ा,शतभिषा,अश्विनी व मृगशिरा।
3. मध्यलोचन नक्षत्र- मघा,चित्रा,ज्येष्ठा,पूर्वाभाद्रपद,भरणी व आर्द्रा।
4. सुलोचन नक्षत्र- पूर्वाफ़ाल्गुनी,स्वाति,मूल,श्रवण,उत्तराभाद्रपद,कृत्तिका व पुनर्वसु।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

बुधवार, 2 जनवरी 2019

कब हानिकारक होती है "भद्रा"-

किसी भी शुभकार्य के मुहूर्त्त का निर्धारण करते समय "भद्रा" का विशेष ध्यान रखा जाता है। पंचांग के "विष्टि" करण को "भद्रा" कहा जाता है। "भद्रा" में शुभकार्य करना निषिद्ध माना गया है। किन्तु "भद्रा" सदैव ही अशुभ नहीं होती। आईए जानते हैं कि "भद्रा" कब विशेष अशुभ व हानिकारक होती है।
मृत्युलोक की "भद्रा" विशेष अशुभ व हानिकारक-
-यदि "भद्रा" वाले दिन चन्द्र कर्क,सिंह,कुम्भ व मीन राशि में स्थित हो तो "भद्रा" का निवास मृत्युलोक रहता है। मृत्युलोक की भद्रा विशेष अशुभ व हानिकारक मानी जाती है। इसमें सभी प्रकार के शुभकार्य वर्जित होते हैं"
-यदि "भद्रा" वाले दिन चन्द्र मेष, वृष, मिथुन, व वृश्चिक राशि में स्थित हो तो भद्रा का निवास (स्वर्गलोक) एवं भद्रा वाले दिन चन्द्र कन्या,तुला,धनु व मकर राशि में स्थित हो तो भद्रा का निवास (पाताललोक) में रहता है। स्वर्गलोक एवं पाताललोक निवासरत भद्रा विशेष अशुभ नहीं होती।
-मध्यान्ह काल के उपरान्त भद्रा विशेष अशुभ नहीं होती।
-शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व एकादशी तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ होती है केवल रात्रि में अशुभ होती है।
-शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है केवल दिन में अशुभ होती है।
-कोर्ट-कचहरी, मुकदमे, चिकित्सा, शत्रु पराभव कार्य, चुनावी नामांकन, वाहन क्रय इत्यादि में भद्रा दोष मान्य नहीं होता।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com