शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

"प्रवज्या योग"

हमारी सनातन आश्रम व्यवस्था में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक खुशहाल घर-सँसार अधिकाँश व्यक्तियों का सपना होता है। लेकिन जन्मपत्रिका में कभी-कभी ऐसी ग्रहस्थितियों का निर्माण हो जाता है जिनसे मनुष्य अपने गृहस्थ जीवन से विरक्त व विमुख होकर अध्यात्म के पथ पर अग्रसर हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को हमारे समाज में साधु-संन्यासीकहा जाता है। आईए जानते हैं वे कौन सी ग्रहस्थितियाँ होती हैं जिनके प्रभाव से मनुष्य संन्यासी-जीवन व्यतीत करता है। गृहस्थ जीवन के लिए जो ग्रह प्रमुख रूप से उत्तरदायी होते हैं वे हैं- द्वितीयेश, चतुर्थेश, द्वादशेश, शुक्र व चन्द्र। जन्मपत्रिका में दूसरा भाव कुटुम्ब व परिवार का होता है, चतुर्थ भाव घर-गृहस्थी का एवं द्वादश भाव शैय्या सुख व भोगविलास का। वहीं शुक्र भोगविलास का नैसर्गिक कारक होता है एवं चन्द्र मन का कारक होता है। यदि इनमें से चार या अधिक ग्रह षष्ठ, अष्टम या द्वादश जैसे अशुभ भावों में स्थित हों एवं इनमें अधिकांश ग्रहों पर शनि-राहु जैसे पृथकतावादी ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का मन घर-परिवार से विमुख होता है। यदि इन ग्रहों से जन्मपत्रिका में चतुर्ग्रही योग का निर्माण हो व इस युति पर केतु का प्रभाव हो तो मनुष्य उच्चकोटि का संन्यासी व मठाधीश होता है।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

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