विवाह हमारे षोडश संस्कारों में एक महत्त्वपूर्ण संस्कार माना गया है। जीवनसाथी के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा माना जाता है। विवाह योग्य आयु होने एवं उपयुक्त जीवनसाथी के चुनाव के पश्चात अक्सर माता-पिता को अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह के मुहूर्त्त को लेकर बड़ी चिन्ता रहती है। सभी माता-पिता अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह श्रेष्ठ मुहूर्त्त में सम्पन्न करना चाहते हैं। विप्र एवं दैवज्ञ के लिए भी विवाह मुहूर्त्त का निर्धारण करना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। विवाह मुहूर्त्त के निर्धारण में कई बातों का विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक होता है। शास्त्रानुसार श्रेष्ठ मुहूर्त्त कई प्रकार के दोषों को शमन करने में समर्थ होता है। अत: विवाह के समय ’पाणिग्रहण’ संस्कार की लग्न का निर्धारण बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। विवाह लग्न का निर्धारण करते कुछ बातों एवं ग्रहस्थितियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आज हम पाठकों को विवाह लग्न के निर्धारण से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी देंगे।
पाणिग्रहण संस्कार की लग्न शुद्धि हेतु निम्न बातों का ध्यान
अवश्य रखना चाहिए-
1. विवाह लग्न का चुनाव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि
विवाह लग्न वर अथवा कन्या के जन्म लग्न व जन्मराशि से अष्टम राशि का ना हो।
2. विवाह लग्न के निर्धारण में यदि लग्न में जन्मलग्न के अष्टमेश
की उपस्थिति हो तो उस लग्न को त्याग दें। विवाह लग्न में जन्मलग्न के अष्टमेश का होना
अति-अशुभ होता है।
3. विवाह लग्न में "लग्न भंग" योग नहीं होना चाहिए। विवाह
लग्न से द्वादश भाव में शनि, दशम भाव में मंगल, तीसरे भाव में शुक्र, लग्न में पापग्रह या क्षीण चन्द्रमा स्थित नहीं होना चाहिए।
4. विवाह लग्नेश, चन्द्र व शुक्र अशुभ
अर्थात् 6, 8, 12
भाव में नहीं होने चाहिए।
5. विवाह लग्न में सप्तम व अष्टम् भाव ग्रहरहित होने चाहिए।
6. विवाह लग्न कर्त्तरी योग से ग्रसित नहीं होना चाहिए।
7. विवाह लग्न अन्ध, बधिर या पंगु नहीं होना चाहिए। मेष, वृषभ, सिंह, दिन में
अन्ध, मिथुन,कर्क,कन्या रात्रि में अन्ध,
तुला, वृश्चिक दिन में बधिर, धनु,मकर रात्रि
में बधिर, कुम्भ दिन में पंगु,
मीन रात्रि में पंगु लग्न होती हैं किन्तु ये लग्न अपने स्वामियों
या गुरू से दृष्ट हों तो ग्राह्य हो जाती हैं।
“गोधूलि-लग्न” की ग्राह्यता-
जब विवाह में पाणिग्रहण हेतु शुद्ध लग्न की प्राप्ति ना हो तो "गोधूलि" लग्न की ग्राह्यता शास्त्रानुसार बताई गई है। "गोधूलि लग्न" सूर्यास्त से 12 मिनिट पूर्व एवं पश्चात् कुल 24 मिनिट अर्थात् 1 घड़ी की होती है, मतान्तर से कुछ विद्वान से इसे सूर्यास्त से 24 मिनिट पूर्व व पश्चात् कुल 48 मिनिट का मानते हैं लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि "गोधूलि लग्न" की ग्राह्यता केवल आपात परिस्थिति में ही होती है जहां तक सम्भव हो शुद्ध लग्न को ही प्राथमिकता देना चाहिए।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com