विषकन्या योग
ज्योतिष शास्त्र में स्त्री जातक के कुछ विशेष योगों का उल्लेख
है। ऐसा ही एक योग है "विषकन्या योग"। यह योग अत्यंत अशुभ होता है। इस योग
में जन्म लेनी वाली कन्या को जीवन पर्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसे दाम्पत्य व सन्तान
सुख प्राप्त नहीं होता व पारिवारिक जीवन दु:खद होता है। यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका
में निम्न ग्रह स्थितियाँ हों तो
"विषकन्या" योग बनेगा। - शनि लग्न अर्थात् प्रथम भाव में, सूर्य
पंचम् भाव में व मंगल नवम् भावे में स्थित हो तो "विषकन्या" योग बनेगा।
- यदि किसी
स्त्री का जन्म रविवार,
मंगलवार व शनिवार को २,७,१२ तिथि
के अन्तर्गत श्लेषा,
शतभिषा, कृत्तिका नक्षत्र में हो तो "विषकन्या"
योग बनेगा।
- यदि किसी
स्त्री की जन्मपत्रिका में लग्न व केन्द्र में पाप ग्रह हों व समस्त शुभ ग्रह शत्रु
क्षेत्री या षष्ठ,
अष्टम व द्वादश स्थानों में हो तो "विषकन्या" योग
बनेगा।
"विषकन्या" योग का परिहार-
यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में "विषकन्या" योग हो व सप्तमेश सप्तम
भाव में हो तो इस योग का परिहार हो जाता है।
इन योगों के कारण नहीं मिलता दाम्पत्य-सुख
हमारे षोडष संस्कारों में विवाह एक अति-महत्त्वपूर्ण संस्कार है वहीं सुखद व प्रेमपूर्ण
दाम्पत्य ईश्वरीय वरदान के सदृश है। लेकिन प्रारब्ध कर्मानुसार व्यक्ति की जन्मपत्रिका
में कुछ ऐसी ग्रहस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप वह दाम्पत्य सुख से
वंचित हो जाता है।
कलहपूर्ण दाम्पत्य अत्यन्त कष्टप्रद व नारकीय जीवन के समान होता है।
आईए जानते हैं कि किन योगों के कारण व्यक्ति दाम्पत्य सुख से वंचित होता है।
जन्मपत्रिका में दाम्पत्य-सुख का विचार सप्तम भाव व सप्तमेश से किया जाता है। इसके
अतिरिक्त शुक्र भी दाम्पत्य-सुख का प्रबल कारक होता है क्योंकि शुक्र भोग-विलास व शैय्या
सुख का प्रतिनिधि है। पुरूष की जन्मपत्रिका में शुक्र पत्नी का एवं स्त्री की जन्मपत्रिका
में गुरू पति का कारक माना गया है। जन्मपत्रिका का द्वादश भाव शैय्या सुख का भाव होता
है। अत: इन दाम्पत्य सुख प्रदाता कारकों पर यदि पाप ग्रहों, क्रूर
ग्रहों व अलगाववादी ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आजीवन दाम्पत्य सुख को तरसता रहता
है। सूर्य,शनि,राहु अलगाववादी स्वभाव वाले ग्रह हैं वहीं मंगल व केतु मारणात्मक स्वभाव वाले ग्रह।
ये सभी दाम्पत्य-सुख के लिए हानिकारक होते हैं।
१. यदि सप्तम भाव पर राहु,शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ
स्थानों में हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता।
२. यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप
ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
३. यदि सप्तम भाव में मकर या कुम्भ राशि स्थित हो, सप्तमेश
सूर्य,शनि व राहु के साथ हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख
नहीं मिलता।
४. यदि सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो
व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
५. यदि द्वादश भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, शुक्र पीड़ित व निर्बल हो
और सप्तम भाव पर सूर्य,राहु व शनि का प्रभाव हो व सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य
सुख प्राप्त नहीं होता।
६. यदि लग्न में राहु स्थित हो एवं जन्मपत्रिका में सूर्य व शुक्र की युति हो तो
जातक को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
७. यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों
में हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।
८. यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें
या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की सम्भावना होती है।
९. यदि लग्न में मंगल हो व सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो व द्वितीयेश पर मारणात्मक
ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित
होना पड़ता है।
१०. यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरू पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश
पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य,शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी
स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
कुछ व्यक्ति बड़े साहसी व पराक्रमी होते हैं। ऐसे लोग जोखिम लेने में तनिक भी नहीं देर नहीं करते इसके विपरीत कुछ लोग बड़े ही दब्बू स्वभाव वाले एवं डरपोक होते हैं।
आईए जानते हैं कि जन्मपत्रिका में वे कौन से ग्रहयोग होते हैं जो व्यक्ति साहसी बनाते हैं।
जन्मपत्रिका के तृतीय भाव से साहस व पराक्रम का विचार किया जाता है। यदि जातक की जन्मपत्रिका में तृतीय भाव पर क्रूर ग्रहों जैसे सूर्य, मंगल, शनि व राहु-केतु का प्रभाव हो तो ऐसा जातक साहसी व पराक्रमी होता है। यदि तृतीय भाव में क्रूर ग्रह की राशि हो या तृतीय भाव क्रूर ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो यह योग जातक को निडर व साहसी बनाता है। तृतीय भाव के अधिपति (तृतीयेश) की क्रूर ग्रहों के साथ युति भी जातक को साहसी बनाती है। इसके विपरीत यदि तृतीय भाव पर सौम्य ग्रहों जैसे चन्द्र, शुक्र, गुरू व बुध आदि का प्रभाव हो तो ऐसा जातक सौम्य स्वभाव वाला होता है।
कौन से योग बनाते हैं प्रखर वक्ता
आपने अक्सर ऐसे व्यक्तियों को देखा होगा जिनकी वाणी अत्यन्त
आकर्षक व प्रभावकारी है। वे जब भी बोलते हैं अपनी वाणी के प्रभाव से सभी का ध्यानाकर्षण
कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ वक्ता, ज्योतिषी, धर्मोपदेशक, कवि, पत्रकार, राजनेता, शिक्षक, गायक आदि बनकर सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। आईए जानते हैं वे कौन से ग्रहयोग होते हैं जो किसी जातक को श्रेष्ठ वक्ता बनाते हैं।
जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, द्वीतीयेश व बुध-गुरू से वाणी का विचार किया जाता है। यदि किसी जन्मपत्रिका में बुध-गुरू का श्रेष्ठ सम्बन्ध हो जैसे राशि परिवर्तन, दृष्टि सम्बन्ध अथवा युति तो ऐसा जातक प्रखर वक्ता होता है। यदि बुध-गुरू के सम्बन्ध के अतिरिक्त द्वीतीयेश शुभ भावों में हो एवं द्वीतीय भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो व इनमें से किसी पर भी कोई पाप प्रभाव ना हो तो ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी के आधार पर पद-प्रतिष्ठा व धन अर्जित करता है।
(विशेष- हमारी स्वयं की जन्मपत्रिका में बुध-गुरू का राशि परिवर्तन
योग है एवं द्वीतीय भाव अपने स्वामी से दृष्ट है।)
क्यों बोलते हैं लोग कठोर वचन
अक्सर आपने सुना होगा कि अमुक व्यक्ति बहुत कड़वा बोलता है या
अमुक व्यक्ति मुँहफ़ट है। इसके पीछे अधिकांश उस व्यक्ति के स्वभाव को उत्तरदायी
मान लिया जाता है। लेकिन कठोर सम्भाषण करने के पीछे जन्मपत्रिका के कुछ ग्रहयोग उत्तरदायी
होते हैं। आईए जानते हैं उन ग्रहयोगों के बारे में जो जातक को कटु भाषी या कुतर्की
बनाते हैं।
किसी भी जातक की वाणी कैसी होगी यह जानने के लिए जन्मपत्रिका के द्वितीय भाव, द्वितीयेश
एवं बुध-गुरू का विचार किया जाना आवश्यक है। बुध वाणी का नैसर्गिक कारक होता है वहीं
गुरू द्वितीय भाव का स्थिर कारक होता है। यदि जन्मपत्रिका के द्वितीय भाव, द्वितीयेश
एवं बुध-गुरू पर राहु,
शनि व मंगल का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति की वाणी कठोर होती है।
वह कुतर्की होता है।
यदि द्वितीय भाव,
द्वितीयेश व बुध-गुरू पर मंगल का प्रभाव हो एवं मंगल अशुभ भावों
का स्वामी हो तो यह जातक को मुँहफ़ट अर्थात् उत्तेजनात्मक
सम्भाषण करने वाला बनाता है। यदि बुध के साथ राहु की युति हो व इस युति पर गुरू की
पूर्ण दृष्टि हो व द्वितीय भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसा जातक अत्यन्त तार्किक
होता है। उसे वाद-विवाद में पराजित करना बेहद कठिन होता है। यदि द्वितीय भाव, द्वितीयेश
एवं बुध-गुरू पर अधिक पाप प्रभाव हों तो जातक वाणीहीन अर्थात गूँगा हो सकता है।
आईए जानते हैं वे कौन से योग होते हैं जिनके फ़लस्वरूप जातक खर्चीला होता है।
कौन से योग बनाते हैं व्यक्ति को खर्चीला
कुछ लोग बहुत खर्चीले होते हैं। उनके हाथ में धन कभी टिकता नहीं
है। ऐसे व्यक्ति जीवन में कभी धन संचय नहीं कर पाते।
आईए जानते हैं वे कौन से योग होते हैं जिनके फ़लस्वरूप जातक खर्चीला होता है।
जन्मपत्रिका के बारहवें भाव को व्यय भाव कहा जाता है। जन्मपत्रिका
के दूसरे भाव से संचित धन का विचार किया जाता है वहीं एकादश भाव से आय व लाभ का।
- यदि धन भाव का अधिपति (धनेश) व्यय भाव में हो और व्ययेश की उस
पर पूर्ण दृष्टि हो।
- यदि व्यय भाव का अधिपति (व्ययेश) लाभ भाव के अधिपति (लाभेश)
के साथ युतिकारक होकर व्यय भाव में हो।
- यदि धनेश व लाभेश अशुभ भाव में हो एवं व्ययेश व्यय भाव में हो।
- यदि व्ययेश की दृष्टि व्यय भाव पर हो।
- यदि व्ययेश
स्वराशिस्थ होकर व्यय भाव में हो।
- यदि धनेश
व्यय भाव में हो एवं व्ययेश स्वराशिस्थ हो व लाभेश अशुभ भावों में हो।
- यदि धन
भाव पर राहु की दृष्टि हो व धनेश अशुभ भावों हो एवं व्ययेश व्यय भाव में हो।
- यदि व्यय
भाव में चर राशि हो अथवा व्ययेश चर राशिगत हो।
यदि उपर्युक्त योग किसी जन्मपत्रिका में
हों तो यह जातक को खर्चीला बनाते हैं।
-ज्योतिर्विद्
पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com
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