योगिनी दशा भी है महत्त्वपूर्ण
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ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा गया है। जिस प्रकार व्यक्ति भले ही सम्पूर्ण स्वस्थ हो किन्तु नेत्र के अभाव में वह अस्वस्थ व अपूर्ण ही कहा जाएगा। इसी प्रकार ज्योतिषीय मार्गदर्शन के अभाव में सांसारिक मनुष्यों का जीवन व्यतीत करना ठीक ऐसे ही है जैसे कोई दुर्गम मार्ग पर आंखे बन्द किए चल रहा हो। ज्योतिष शास्त्र में जातक के जीवन का भविष्यसंकेत करने के लिए अनेक पद्धतियां है उन पद्धतियों में घटनाओं के समय को सुनिश्चित करने के लिए दशा पद्धति को अपनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, चर व योगिनी दशाओं के माध्यम से जातक के वर्तमान व भविष्य के बारे में दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। इन दशाओं में "विंशोत्तरी दशा" को सर्वत्र ग्राह्य व मान्य किया जाता है किन्तु "विंशोत्तरी दशा" के अतिरिक्त एक और दशा है जो जातक के जीवन पर अपना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है, वह दशा है- योगिनी दशा। "योगिनी दशा" की गणना किए बिना कोई भी ज्योतिषी जातक के भविष्य के बारे सटीक भविष्य संकेत कर ही नहीं सकता। "योगिनी दशा" के बारे में मान्यता है कि ये दशाएं स्वयं भगवान शिव के द्वारा बनाई हुई हैं एवं जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में "योगिनी दशाओं" का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
योगिनी दशाओं के प्रकार
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योगिनी दशाएं आठ प्रकार की होती हैं एवं इनके भी अधिपति ग्रह होते हैं, ये हैं-
1. मंगला- चन्द्र
2. पिंगला- सूर्य
3. धान्या-गुरू
4. भ्रामरी-मंगल
5. भद्रिका-बुध
6. उल्का-शनि
7. सिद्धा- शुक्र
8. संकटा- राहु
योगिनी दशाओं के भोग्यकाल वर्ष
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विंशोत्तरी दशाओं के समान ही योगिनी दशाओं के भी निश्चित भोग्य कालखण्ड होते हैं। आईए जानते हैं कि किस योगिनी की दशा कितने वर्षों की होती है-
1. मंगला - एक वर्ष
2. पिंगला - दो वर्ष
3. धान्या- तीन वर्ष
4. भ्रामरी- चार वर्ष
5. भद्रिका- पांच वर्ष
6. उल्का- छह वर्ष
7. सिद्धा- सात वर्ष
8. संकटा- आठ वर्ष
कौन सी होती है शुभ योगिनी
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विंशोत्तरी दशा में जहां शुभाशुभ समय का निर्णय केवल महादशानाथ व अन्तर्दशानाथ की जन्मकुण्डली में स्थिति के आधार पर किया जाता है वहीं योगिनी दशा में इसके अतिरिक्त प्रत्येक योगिनी का एक निश्चित फल भी होता है जिसके आधार पर जातक को परिणाम प्राप्त होते हैं।
शुभ योगिनी- मंगला, धान्या, भद्रिका, सिद्धा
अशुभ योगिनी- पिंगला, भ्रामरी, उल्का, संकटा
योगिनी दशाफल
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1. मंगला- (चन्द्र)
- शत्रु से विवाद, वाहन से भय, वाहन का विनाश, रत्न लाभ, स्त्री-पुत्र और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
2. पिंगला-(सूर्य)
- दु:ख, शोक व्याग्रता और स्वजनों से कलह होता है।
3. धान्या-(गुरू)
- धनधान्य का लाभ, युद्ध में विजय, स्त्री सुख, वस्त्राभूषण की प्राप्ति होती है।
4 .भ्रामरी-(मंगल)
- विदेश यात्रा से कष्ट, स्त्री से पीड़ा, कर्ज, संकट व राजदण्ड होता है।
5. भद्रिका-(बुध)
- धनलाभ, वस्त्राभूषण की प्राप्ति, मान-सम्मान, स्त्री सुख की प्राप्ति, कल्याणकारी होती है।
6. उल्का-(शनि)
- आत्मीयजनों से विवाद, रोग, धनहानि, स्त्री वियोग, मित्रों व सम्बन्धियों से बैर, अनर्थकारी होती है।
7. सिद्धा-(शुक्र)
- राजसुख, आत्मीयजनों से लाभ, धनलाभ, स्त्रीसुख, सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
8. संकटा-(राहु)
- स्वजनों से विवाद, रोग, जीवनसाथी को कष्ट, घर में कलह, संकटकारी होती है।
इनमें "संकटा" की दशा सर्वाधिक अशुभ होती है। यदि "संकटा" के साथ-साथ विंशोत्तरी दशाओं में भी किसी अशुभ ग्रह की महादशा-अन्तर्दशा हो तो जातक को भीषण कष्ट भोगना पड़ता है। यदि मारकेश की महादशा/अन्तर्दशा के साथ "संकटा" की दशा भी चल रही हो तो जातक का जीवन तक संकट में पड़ जाता है। जन्मपत्रिका विश्लेषण कराते समय "योगिनी दशाओं" के सम्बन्ध जानकारी लेकर अशुभ योगिनी की वैदिक शान्ति कराकर दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com
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