कठिन मनोरथों की पूर्ती करता है "बटुक भैरव" अनुष्ठान-
हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों का उल्लेख मिलता है जिन्हें उचित विधि व निर्धारित मुहूर्त्त में सम्पन्न करने से साधक की कठिन व दुष्कर मनोकामनाओं की पूर्ती होती है। ऐसा ही एक सिद्ध अनुष्ठान है "बटुक भैरव" अनुष्ठान, इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से साधक अपनी मनोवांछित अभिलाषाएं पूर्ण कर सकता है। यह अनुष्ठान रवि-पुष्य नक्षत्र, होली की पूर्णिमा, ग्रहणकाल, दुर्गाष्टमी को ही सम्पन्न किया जाना आवश्यक है। आवश्यकतानुसार इसे गुरू-पुष्य व सर्वार्थ सिद्धि योग में भी सम्पन्न किया जा सकता है। इस अनुष्ठान को रात्रि के समय सम्पन्न किया जाना श्रेयस्कर रहता है।
कैसे करें "बटुक-भैरव" अनुष्ठान-
इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिए मन्दिर या अपने घर का कोई साफ़-स्वच्छ व एकान्त कक्ष उचित रहता है। श्रेष्ठ व निर्धारित मुहूर्त्त वाले दिन सर्वप्रथम हल्दी से भोजपत्र पर "बटुक-भैरव" यन्त्र का निर्माण करें। यन्त्र के मध्य में घी का दीपक रखें। यन्त्र के सम्मुख भैरव जी का चित्र स्थापित करें। संकल्प, आवाहन, स्थापन एवं यन्त्र प्रतिष्ठा करने के उपरान्त भैरव जी का षोडशोपचार पूजन कर उन्हें दही बड़े व मदिरा का भोग अर्पित करें। तदुपरान्त निम्न मन्त्र से घी व शहद मिश्रित जौ-तिल से हवन करें। हवन के उपरान्त यन्त्र को अपने पूजाघर में स्थापित कर मनोवांछित कार्यसिद्ध होने तक नित्य पूजा-अर्चना करते रहें। कार्यसिद्ध होने के उपरान्त यन्त्र को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें। इस अनुष्ठान को आवश्यकतानुसार एक, तीन या पांच बार सम्पन्न करने से कठिन से कठिन मनोरथों की पूर्ती होती है।
मन्त्र-"ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं स्वाहा"
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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