"अन्योन्यकेन्द्रग्रहगौ गुरूबन्धुनाथौ।
लग्नाधिपे बलयुते यदि काहलः स्यात॥"
यदि चतुर्थेश तथा भाग्येश एक-दूसरे से केन्द्र में स्थित हो और लग्नाधिपति बलवान हो तो "काहल-योग" होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य ओजस्वी,मान्य व राजा के समान होता है।
लग्नाधिपे बलयुते यदि काहलः स्यात॥"
यदि चतुर्थेश तथा भाग्येश एक-दूसरे से केन्द्र में स्थित हो और लग्नाधिपति बलवान हो तो "काहल-योग" होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य ओजस्वी,मान्य व राजा के समान होता है।
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