"द्वितीये पंचमे जीवे बुधशुक्रयुतेक्षिते।
क्षेत्रेतयोर्वा संप्राप्ते, योगः स्यात स कलानिधिः॥"
यदि गुरू द्वितीय भाव में बुध; शुक्र से युक्त या द्रष्ट या उसकी राशि में हो तो "कलानिधि योग" बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य राज्य ऐश्वर्य से युक्त व कलाओं में निपुण होता है।
क्षेत्रेतयोर्वा संप्राप्ते, योगः स्यात स कलानिधिः॥"
यदि गुरू द्वितीय भाव में बुध; शुक्र से युक्त या द्रष्ट या उसकी राशि में हो तो "कलानिधि योग" बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य राज्य ऐश्वर्य से युक्त व कलाओं में निपुण होता है।
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