" षष्ठाष्टमं गतश्चन्द्रात सुरराज्पुरोहितः।
केन्द्रादन्यगतो लग्नाद्योगः शकटसंजितः॥
अपि राजकुले जातः निः स्वः शकटयोगजः।
क्लेशायासवशान्नित्यं संतप्तो न्रपविप्रियः॥
यदि चन्द्र और गुरू का षडष्टक हो अर्थात वे एक-दूसरे से छठे अथवा आठवें स्थित हों और गुरू लग्न से केन्द्र में ना हो "शकट योग" बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य यदि राजकुल में भी उत्पन्न हो तो भी निर्धन रहता है। सदा कष्ट तथा परिश्रम से जीवन-यापन करता है और राजा एवं भाग्य सदा उसके प्रतिकूल रहता है।
केन्द्रादन्यगतो लग्नाद्योगः शकटसंजितः॥
अपि राजकुले जातः निः स्वः शकटयोगजः।
क्लेशायासवशान्नित्यं संतप्तो न्रपविप्रियः॥
यदि चन्द्र और गुरू का षडष्टक हो अर्थात वे एक-दूसरे से छठे अथवा आठवें स्थित हों और गुरू लग्न से केन्द्र में ना हो "शकट योग" बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य यदि राजकुल में भी उत्पन्न हो तो भी निर्धन रहता है। सदा कष्ट तथा परिश्रम से जीवन-यापन करता है और राजा एवं भाग्य सदा उसके प्रतिकूल रहता है।
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