ज्योतिष वेद का अंग है। ज्योतिष-शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा गया है। जिस प्रकार मनुष्य समस्त इंद्रियां व अंग होते हुए भी नेत्रों के बिना अधूरा है ठीक उसी प्रकार वैदिक शास्त्र ज्योतिष रूपी नेत्र के बिना अधूरा है। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा ग्रहस्थिति का अध्ययन करके भविष्य में होने वाली घटनाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। शास्त्र का वचन है "यत्पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे" अर्थात जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है। यह संसार माला की लड़ियों की भांति एक-दूसरे में परस्पर गुंथा हुआ है। स्रष्टि का प्रत्येक कण उस चेतन से जुड़ा हुआ है। संसार में जो भी घटित होता है वह सब एक-दूसरे से किसी ना किसी रूप में संबंधित होता है। इसी प्रकार जन्म के समय जो आकाशीय ग्रह स्थिति होती है उसका पूर्ण प्रभाव भी जन्म लेने वाले अर्थात जातक पर पड़ता है। उस आकाशीय ग्रह स्थिति संबंधित गुण-दोष उस जातक पर अपना प्रभाव बनाए रखते हैं इतना ही नहीं समय-समय बदलती हुई आकाशीय ग्रह स्थिति से भी मनुष्य प्रभावित होता है। जिस प्रकार ग्रीष्म काल में सूर्य के प्रभाव से उसे पसीना आ जाता है वहीं सर्दियों में वही किरणें उसे आनंद प्रदान करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में महर्षियों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत हैं जिन्हें लेखनीबद्ध किया गया है जैसे वशिष्ठ,व्यास,वरूचि,
वराहमिहिर,कालिदास,पाराशर,भ्रगु,भास्कराचार्य,आर्यभट्ट आदि। वर्तमान काल में ज्योतिष का प्रयोग एक दर्पन की भांति करना चाहिये। ना तो इसके अंधविश्वासी बनें और ना ही इसे उपेक्षित करें क्योंकि ज्योतिष एक विशुद्ध विज्ञान है। जो मनुष्य के भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में संकेत करने में पूर्ण-रूपेण सक्षम है।
वराहमिहिर,कालिदास,पाराशर,भ्रगु,भास्कराचार्य,आर्यभट्ट आदि। वर्तमान काल में ज्योतिष का प्रयोग एक दर्पन की भांति करना चाहिये। ना तो इसके अंधविश्वासी बनें और ना ही इसे उपेक्षित करें क्योंकि ज्योतिष एक विशुद्ध विज्ञान है। जो मनुष्य के भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में संकेत करने में पूर्ण-रूपेण सक्षम है।
हेमन्त रिछारिया "ज्योतिर्विद"
एकेडमी आफ वैदिक एस्ट्रोलोजी,नई दिल्ली से "ज्योतिर्विद" की उपाधि प्राप्त।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.