"शुभ कर्तरि संजातस्तेजोवित्तबलाधिकः।
पापकर्तरिके पापी भिक्षाशी मलिनो भवेत॥"
जब लग्न से द्वितीय व द्वादश पाप ग्रह स्थित होते हैं तो "पापकर्तरि योग" बनता है।
इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करने वाला, निर्धन व गन्दा होता है।
पापकर्तरिके पापी भिक्षाशी मलिनो भवेत॥"
जब लग्न से द्वितीय व द्वादश पाप ग्रह स्थित होते हैं तो "पापकर्तरि योग" बनता है।
इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करने वाला, निर्धन व गन्दा होता है।
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